उन आंखों में काजल लगाने की मनाही थी
क्योंकि भले घर की लड़कियां काजल नहींं लगाती

सपनों के ठहरने पर भी पाबंदियां लगी थी
क्योंकि सपने बना देते हैंं  खानाबदोश

उन्हें सिखाया गया था  सिर झुकाए रहना
नज़र मिलाने की इजाज़त नहीं थी

रंगों को बस छू सकना
कोई रंग किसी ख्वाब में न भर लेना
सूरज को न देख सको जहाँ घूर कर
निगाहें जाए बस वहां तक

तुम पहनो झुमका, पायल, कंगन बेशक
क्योंकि ये सब पहचान है तुम्हारे नारीत्व की


मगर इन सबसे पहले सिर पर डालो चुनर
ताकि सिर न उठाए तुम्हारा स्वाभिमान
क्योंकि भली नहीं होती स्वाभिमानिनी नारी
उसका स्वाभिमान करता है कुल को लांछित

लच्छन अच्छे नहीं होते ऐसी स्त्रियों के
चर्चा का विषय होती जिनकी निर्बाधिता
जो उगा लेना चाहती है चाहतोंं की फसल
अपनी हथेलियों में बसी मन की तहोंं में..
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