नई दिल्ली : पुनीत माथुर। पेश है युवा कवियत्री ममता चौधरी की एक सुंदर रचना 'दिल से'-
इस स्मार्टफोन के जमाने में
सोचती हूं तुम्हें खत लिखूं
लिखूं उस लिखावट मे
जो समझ पाओ तुम
लिखूं वो तमाम अनकही
जिन्हें कभी खुद भी नहीं सुना मैंने
वो उदासियां उकेर भेजूं उसमें
जिन्हें महसूसती रही मुस्कुराते हुए भी
वह तनहाइयां लपेट भेजूं उसमें
जब भरी भीड़ में भी डर था हाथ छोड़े जाने का
लिख दूं वह खामोश अश्क सारे
जो बह गए थ तुम्हारे कांधे पर सर रखे हुए
और तुम्हारी बुशर्ट बचा ली थी गीलेपन से
लिखूं तुम्हारे सवालों के जवाब तमाम
और साथ ही एक फेहरिस्त अपने मुर्दा सवालों की
याद दिलाऊँ तुम्हें आखिरी बार
कब नॉर्मल बातें की थी हमने
मगर मुझे खुद याद नहीं तो कैसे तुमसे पूछूं
कि कब मेरी बात चुभने की बजाय
गुदगुदा गई थी तुम्हें
कब मेरे जवाब पर किया था तुमने यकीं
कब नहीं हँसे थे तल्ख हंसी तुम
खैर छोड़ो! इतनी फिजूल बातों के लिए
क्या ही खत लिखा जाए
क्यूँ बर्बाद किए जाए अल्फाज
होता तो यूं कि पढ़ लेते तुम
अरसे से बह रही ख़ुश्क सांसों को
रगों में बह रही नमी को सूंघ लेते
चख लेते वह थकन जो पाई है जिंदगी संजोते-संजोते
महसूस लेते ये बिखरन जो जाया कर रही मुझे कतरा-कतरा होता तो यूं कि तुम समझ पाते कि
मर रही है सांसे जिए जाने के एवज़ में
होता तो यूं कि तुम न रखते प्रेम को तराज़ू में
और हल्का पलडा मेरा ही ना होता हर दम
होता तो यूं भी, ये सारी शिकायते ही नहीं होती..
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