कोलकाताः तृणमूल कांग्रेस के एक और विधायक ने भारतीय जनता पार्टी में शामिल होने की तैयारी में हैं। पिछले कुछ हफ्तों से पश्चिम बंगाल में टीएमसी के विधायक एक-एक करके ममता बनर्जी का साथ छोड़ते जा रहे हैं और यह श्रृंखलाबद्ध तरीके से हो रहा है। अलीपुरदुआर के कालचीनी निर्वाचन क्षेत्र के टीएमसी विधायक विल्सन चामप्रामारी ने मीडिया को बताया कि पार्टी के 18 पार्षद भाजपा में शामिल होने की तैयारी कर रहे हैं। चामप्रामारी ने कहा कि कई और लोग भाजपा आलाकमान के संपर्क में हैं और जल्द ही भाजपा में शामिल हो सकते हैं।
हाल के दिनों में कई टीएमसी नेताओं ने अपनी पार्टी बदलकर भाजपा का रुख कर लिया है। यह बता पाना थोड़ा मुश्किल है कि टीएमसी के कितने पार्षद उसका साथ छोड़कर भाजपा में शामिल हुए हैं, क्योंकि टीएमसी और भाजपा के दावे अलग-अलग हैं।
पश्चिम बंगाल में लोकसभा चुनावों में भाजपा को प्रभावशाली बढ़त मिली है। लोकसभा चुनावों सात चरणों में संपन्न हुए थे। जिसके बाद भाजपा ने दावा किया था कि मतदान के सात चरणों की तरह ही टीएमसी विधायक सात चरण में दलबदल करके भाजपा में शामिल होंगे।
पश्चिम बंगाल की कुल 42 सीटों में से भाजपा को 18 लोकसभा सीटों पर जीत मिली थी, जबकि टीएमसी ने 22 सीटों पर जीत दर्ज की है। उपचुनावों में भी भाजपा ने दस में से चार सीटें जीतीं, जबकि टीएमसी ने सिर्फ तीन सीटों पर जीत दर्ज कर पाई। टीएमसी के 37 प्रतिशत वोट शेयर की तुलना में भाजपा का वोट प्रतिशत बढ़कर 40 प्रतिशत हो गया। चुनाव परिणाम तृणमूल कांग्रेस और पश्चिम बंगाल की सीएम और पार्टी प्रमुख ममता बनर्जी के लिए काफी नुकसानदायक साबित हुए। 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को महज दो सीटें ही मिली थीं।
पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी और भाजपा की लड़ाई खुलकर सामने आ गई है। कई बार हिंसा की खबरें आईं जिसमें भाजपा समेत टीएमसी के कई कार्यकर्ताओं की मौत भी हो गई। उसके बाद राज्य के राज्यपाल केशरीनाथ त्रिपाठी ने पीएम मोदी से भी मुलाकात की और राज्य के हालात के अवगत कराया।
उसके बाद डॉक्टरों की हड़ताल से राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्था चरमरा गई। हालात बेकाबू होता देख ममता बनर्जी ने डॉक्टरों की सभी मांगों को माल लिया और उनके सुरक्षा की गारंटी दी।
भारतीय जनता पार्टी राज्य में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए हर संभव कोशिश में जुटी है। लेकिन ममता बनर्जी बड़ी मजबूती के साथ भाजपा से लड़ाई लड़ रही हैं। ममता ने अपना वोट बैंक बचाये रखने के लिए प्रांतवाद का कार्ड भी खेल दिया है। उनका कहना है कि पश्चिम बंगाल में आने वालों को बंगाली आनी चाहिए। अब देखना यह है कि ममता बनर्जी किस तरह से भाजपा का सामना कर पाती हैं और राज्य की सत्ता में वापसी के लिए रास्ता बनाती हैं।
तृणमूल कांग्रेस का उदय ही इसलिए हुआ था, ताकि पश्चिम बंगाल के लोगों को कांग्रेस और वाम मोर्चे का एक विकल्प मिल सके। चूंकि तृणमूल कांग्रेस भी अतिवादी रास्ते पर चल निकली तो भारतीय जनता पार्टी ने खुद को एक विकल्प के रूप में पेश किया।
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