नई दिल्ली I अयोध्या में राम मंदिर निर्माण को लेकर एक बार फिर से सियासत तेज हो गई है. शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे अपने 18 सांसदों के साथ आज रविवार को अयोध्या पहुंच रहे हैं. उनका यह कदम राम मंदिर निर्माण के लिए मोदी सरकार पर राजनीतिक दबाव बनाने के रूप में देखा जा रहा है.
लोकसभा चुनाव से पहले भी उद्धव ठाकरे ने अपने परिवार के साथ अयोध्या का दौरा किया था और राम मंदिर निर्माण को लेकर मोदी सरकार को कठघरे में खड़ा किया था. अब लोकसभा चुनाव के बाद साधु-संतों के जयकारे के बीच उद्धव ठाकरे खुद भी 16 जून को अपने 18 सांसदों के साथ अयोध्या पहुंच रहे हैं.
जब लोकसभा चुनाव से पहले उद्धव ठाकरे पहली बार अयोध्या पहुंचे थे, तब कहा था कि राम हमारे लिए राजनीति का विषय नहीं हैं. शिवसेना राम के नाम पर कभी वोट नहीं मांगेगी. लोकसभा चुनाव के बाद हम फिर अयोध्या आएंगे. वैसे देखा जाए, तो उद्धव ठाकरे की सियासी विरासत ही अयोध्या से जुड़ी है. हालांकि ये बात अलग है कि उनको इसे अयोध्या यात्रा के साथ संभालने का ख्याल तीन दशक बाद आया.
वहीं, मोदी सरकार और योगी सरकार पर साधु-संत लगातार दबाव बना रहे हैं. इनका कहना है कि मोदी सरकार एक बार फिर से राम मंदिर निर्माण का वादा करके सत्ता में बहुमत से आ गई है. अब केंद्र में मोदी सरकार और उत्तर प्रदेश में योगी सरकार है, तो राम मंदिर निर्माण में देरी किस बात की? साधु-संत लोकसभा चुनाव से पहले मोदी सरकार से राम मंदिर बनाने के लिए अध्यादेश तक लाने की मांग कर चुके हैं.
संत समाज के साथ शिवसेना जैसे सियासी सहयोगी दल भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की तरफ उम्मीद भरी नजरों से देख रहे हैं. ऐसे में अब मंदिर निर्माण के लिए इससे बेहतर सियासी हालात और क्या होंगे? वैसे भी राम मंदिर मुद्दे के सहारे ही बीजेपी ने अपना अलग सियासी वजूद बनाया है. फिलहाल राम मंदिर निर्माण का मामला सुप्रीम कोर्ट में है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद कह चुके हैं कि कोर्ट का फैसला आने के बाद ही सरकार इस मसले पर कोई कदम उठाएगी.
क्या है पूरा मामला?
राम मंदिर मामले को साल 1950 में गोपाल सिंह विशारद ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में दाखिल किया था. इसके जरिए उन्होंने विवादित स्थल पर हिंदू रीति रिवाज से पूजा करने की इजाजत मांगी. इसके बाद साल 1959 में निर्मोही अखाड़ा ने विवादित भूमि पर अपने नियंत्रण की मांग की. निर्मोही अखाड़ा की तरह मुस्लिम सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने भी कोर्ट में विवादित भूमि पर अपना दावा ठोक दिया.
इसके बाद साल 2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने विवादित जमीन को तीन हिस्सों में बांट दिया और रामलला विराजमान, निर्मोही अखाड़ा व सुन्नी वक्फ बोर्ड के बीच को सौंप भी दिया. अब इसी टाइटिल सूट पर आम सहमति के लिए सुप्रीम कोर्ट ने तीन सदस्यों का पैनल बनाया है, जिसे नई समय सीमा के तहत 15 अगस्त तक अपनी रिपोर्ट सीलबंद लिफाफे में दाखिल करनी है.
यह पैनल इस बात की तस्दीक करेगा कि क्या विवाद से जुड़े पक्षों के बीच आम सहमति बन सकती है. अगर हां, तो इसका फार्मूला क्या होगा? इस तीन सदस्यीय पैनल में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायमूर्ति फकीर मोहम्मद इब्राहिम कलिफुल्ला, आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर और वरिष्ठ वकील श्रीराम पंचु शामिल हैं. इस पैनल की रिपोर्ट के सामने आने के बाद ही पता चल पाएगा कि अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का रास्ता आखिर कैसे बनेगा?
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